क्यों दुनिया हमें जीने नहीं देती,
क्यों गम के आंसू पीने नहीं देती।
कब तक हम यूं घुटकर जीते रहेंगे,
आखिर कब तक ये आंसू पीते रहेंगे।
आखिर हमारे भी कुछ अरमान हैं,
हमें भी बनानी अपनी पहचान है।
क्यों किसी को हमारी भाषा समझ नहीं आती,
क्या करें...हमसे भी बात छुपाई नहीं जाती।
दिल दुखता हैं, तभी तो दर्द होता है,
पर दुनिया के लिए, ये सिर्फ मज़ा होता है।
कहने को तो हम आज़ाद भारत में रहते हैं,
वहीं जहां हमारे सब अधिकार छीन लिए जाते हैं।
आज़ाद तो हुए, और आज़ादी भी मिली,
यहीं हमारी सब खुशियां मिट्टी में मिली।
हर वक्त समाज क्यूं टोकता है हमें,
आगे बढ़ने से क्यूं रोकता है हमें।
आखिर कबतक हमे समाज के दिखाए रास्ते पर चलना होगा,
कब तक उन्ही रास्तों पर चलकर आगे बढ़ना होगा।
...................कब तक..कब तक ...आखिर कब तक.................