Monday 21 November 2011

कब जीयेंगे हम अपनी ज़िंदगी..

क्यों दुनिया हमें जीने नहीं देती,
क्यों गम के आंसू पीने नहीं देती।
कब तक हम यूं घुटकर जीते रहेंगे,
आखिर कब तक ये आंसू पीते रहेंगे।
आखिर हमारे भी कुछ अरमान हैं,
हमें भी बनानी अपनी पहचान है।
क्यों किसी को हमारी भाषा समझ नहीं आती,
क्या करें...हमसे भी बात छुपाई नहीं जाती।
दिल दुखता हैं, तभी तो दर्द होता है,
पर दुनिया के लिए, ये सिर्फ मज़ा होता है।
कहने को तो हम आज़ाद भारत में रहते हैं,
वहीं जहां हमारे सब अधिकार छीन लिए जाते हैं।
आज़ाद तो हुए, और आज़ादी भी मिली,
यहीं हमारी सब खुशियां मिट्टी में मिली।
हर वक्त समाज क्यूं टोकता है हमें,
आगे बढ़ने से क्यूं रोकता है हमें।
आखिर कबतक हमे समाज के दिखाए रास्ते पर चलना होगा,
कब तक उन्ही रास्तों पर चलकर आगे बढ़ना होगा।
...................कब तक..कब तक ...आखिर कब तक.................


Sunday 11 September 2011

सपने अपने-अपने

सपने हर कोई देखता है, कोई बड़ा बनने का सपना तो कोई आसमान छूने का सपना।मेरा भी है इक सपना। दुनिया को ये बताने का, मेरी भी एक पहचान है, जिसमें बसती मेरी शान है।जिंदगी के हर मोड़ पर लोगों ने गिराया, पर उठना किसी एक ने सिखाया।गिर कर उठना ही तो जिंदगी है, जिसमें बहुत सारी खुशी छिपी है।खुशी मिली तो बहुत से सपने संजोए,उन सपनों को पाने में बहुत से अपने खोए।मंजिल मिली तो कोई किनारा ना मिला,डूबते रहे पर कोई सहारा ना मिला।सपने तो देखे, जिनमें अपनों को भी देखा।जब खुली आँख तो अपनों से ही मिला धोखा।हुई खता जो सपनों पर किया भरोसा,ये सोचकर बार-बार ये दिल रोता।दिल को समझाया क्यों तू रोता,इस धरती पर ना कोई अपना होता।इंसान है तू अपनी फितरत मत छोड़, सपने तू देख इनसे मुँह मत मोड़।।

मौत

मौत से क्या डरना यारों, मौत तो इक दिन आनी है
हस्ते-हस्ते जी लो जिन्दगी, यही तो जिनंदगानी है
कल की सोचकर हैं बैठे, यही इक परेशानी है
नहीं रहेगा कल जब समय, समय तो बहता पानी है
आज जो हैं खुशियां, वो कल मिट्टी में मिल जानी हैं
तरसोगे जब कल तुम इनको, हाथ में ना आनी है
एक झमेला है दुनियां का, जिसकी रीत पुरानी है
भर लो जितनी जेबें भरनी, जेबें तो खाली जानी हैं
कोई कहे मुझसे, सुन मेरी इक परेशानी है
घर में नहीं है पैसा, पर भेलपुरी खानी है
मैनें कहा सुन मेरी बात, दुनिया पैसे की दीवानी है
सोच-समझकर कर खर्च, बचत कहीं नहीं जानी है
मौत से क्या डरना यारों, मौत तो इक दिन आनी है
हस्ते-हस्ते जी लो जिन्दगी, यही तो जिनंदगानी है

Thursday 8 September 2011

मौत सिर्फ आतंकियों की जुबानी


दिल्ली दिल वालों की....दिल्ली मेरी जान... ये तो सभी बड़े शान से कहते हैं, जो सभी को अपने में समेटने का दम रखती है...यहां आकर हर कोई आसानी से बस जाता है...दिल्ली से हर किसी का दिल से नाता जुड़ जाता है...और अगर इसी दिल को कोई चोट पहुंचाए तो कितना दर्द होता है...दर्द ऐसा जो रात की नींद और दिन का चैन छीन ले....दिल्ली में धमाकों का कहर जारी है...धमाका ऐसा जो कई मासूमों को मौत की नींद सुला देता है...इन धमाकों ने अबतक कई हजार लोगों की जान ली....ये कोई नहीं जानता जो आज घर से निकला है वो शाम को घर लौटेगा भी या नहीं....इन धमाकों ने उन मासूमों को मौत की नींद सुलाया जिनकी किसी से कोई दुशमनी नहीं थी....

जाने कितने मासूम मौत की नींद सो गए
कल तक जो अपने थे आज सपने हो गए
एक धमाके ने कितना कुछ तबाह कर दिया
ये देखकर मेरा दिल आंसूओं से भर गया
मौत हुई उन बेगुनाहों की,जिनका कोई कसूर ना था
आतंकियों ने सिर्फ अपने मनसूबे को अंजाम दिया था
धमाका हुआ वक्त वहीं थम गया
इसी बीच एक मासूम अपनी माँ से लिपट गया
और बोला माँ मुझे उठाले
अपनी गोद में सुला ले
माँ बोली बेटा तू तो सिर्फ मेरा है
पर क्या करें देश को आतंकियों ने घेरा है
माँ कहती बेटा मौत तो एक दिन आनी है
पर आज मौत सिर्फ आतंकियों की मेहरबानी है

Saturday 3 September 2011

जिन्दगी

आते-जाते खुबसूरत आवारा सड़कों पे, कभी कोई इत्तीफाक से कितने अन्जान मिल जाते हैं....उनमें से कुछ लोग भूल जाते हैं, कुछ याद रह जाते हैं.....................
 किसी ने सच ही कहा है, हमें जिन्दगी के किस मोड़ पर कब कौन मिल जाए कुछ नहीं कह सकते।उनमें से कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो हमारी जिन्दगी का हिस्सा बनकर हमारे साथ रहते हैं और कुछ जो हवा के झौंके की तरह होते हैं, जो जिन्दगी में आते तो हैं, पर जाते -जाते अपना नामोनिशान तक मिटा जाते हैं। 
आते हैं मुसाफिर, जाते हैं मुसाफिर..जाना ही है फिर क्यूं आते हैं मुसाफिर
 ये भी सच है, पर जो आया है उसे  जाना ही है,फिर क्यों हमें उनके जाने का दुख रहता है।हमें दुख तो होता है पर हमारे दुख का अहसास भी किसी-किसी को होता है...और ऐसे इंसान दुनियां में बहुत कम होते हैं,पर मैं हूं कौन जो किसी से शिकायत करूं..क्यूं मैं किसी से उम्मीद लगाऊं, क्यूं मैं किसी से कहूं के तुम मेरे हो ।                ( क्योंकि मैं भी एक इंसान हूं और इंसान की फितरत ही ऐसी होती है )

समझ अपनी-अपनी

कहते हैं उस एक परमात्मा ने पूरी दुनिया बनाई..जिसकी लीला इतनी न्यारी जिसे ना ही कोई समझ पाया और ना ही कोई समझ पाएगा....वो अनंनत है...निराकार है...हम सब हैं तो उस परमात्मा की सन्तान पर रूप अलग-अलग.....ये भी सोचने की बात है, कि जब हम हैं ही उस प्रभू की संतान तो हममें इतना अंतर क्यों.....अंतर इसलिए है कि सृष्टि को रचने वाली है औरत ! जिसके बिना सृष्टि कल्पना भी नहीं की जा सकती.... जिसे माँ,बेटी,औरत,बहन,पत्नी और भी कई नाम मिले हैं इस संसार में....जिसकी कोख से हम पैदा हुए हैं......जिसने 9 महीने हमें अपने पेट में पाला है.....वो माँ जो हर दुख-दर्द को पानी की तरह पीती रही....कभी अपने आंसू बाहर न आने दिए....सिर्फ उसे ही अपनी खुशियों का गला क्यों घोटना पड़ता है....उसे ही हर बार झुकना क्यों पड़ता है....लड़की चाहे तो क्या नहीं कर सकती, फिर भी वो चुप क्यों रह जाती है....?????????